राहुल
द्रविड़ ने एक बार गुस्से में आकर कुर्सी उठाकर फेंक दी थी। भारतीय
क्रिकेट के मिस्टर कूल ने टीम की शर्मनाक हार के बाद ऐसा किया था। क्रिकेट
को अलविदा कहने वाले द्रविड़ की पत्नी विजेता ने इसका खुलासा किया है।
विजेता ने द्रविड़ के जीवन के ऐसे ही कुछ अनछुए पहलुओं को एक लेख में उजागर किया है। विजेता ने कहा कि इतने साल में द्रविड़ ने कभी आपा नहीं खोया लेकिन एक बार वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख सके। विजेता ने कहा, ‘मुझे याद है कि एक बार वह टेस्ट से लौटे और कहा कि मुझे आज बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कुछ और नहीं कहा। कई महीनों बाद वीरू ने मुझे बताया कि मुंबई में इंग्लैंड से हारने के बाद उन्होंने कुर्सी उठाकर फेंक दी थी।’
विजेता ने कहा कि राहुल को 2007-08 तक खेलने की उम्मीद थी, लेकिन उनके समर्पण, जुनून और फिटनेस रूटीन की वजह से वह 2012 तक खेल सके।द्रविड़ रात या दिन की परवाह किए बगैर शैडो प्रैक्टिस में मशगूल रहते थे। विजेता लिखती हैं, 'यह मेरे लिए अजीब था, एक बार तो रात को मुझे ऐसा लगा जैसे राहुल नींद में चल रहे हों, लेकिन वो प्रैक्टिस कर रहे थे।'
विजेता ने बताया है कि हर दौरे पर जाने के लिए राहुल का सारा सामान वह खुद पैक करती थीं, लेकिन वह उन्हें क्रिकेट किट पैक नहीं करने देते थे। क्रिकेट किट राहुल को काफी अजीज थी और उसे वह खुद ही पैक करते थे। उन्हें कपड़ों, ब्रांडेड घड़ियों, कारों या गैजेट्स की कोई चिंता नहीं थी। यहां तक कि राहुल बीस साल तक एक ही ड्राई क्रीम लगाते रहे। लेकिन क्रिकेट किट से कोई समझौता उन्हें मंजूर नहीं था। उनके बल्ले का वजन एक ग्राम भी कम हो जाए तो उन्हें तुरंत महसूस होता था।
राहुल मैच से पहले जम कर पसीना बहाते थे, लेकिन मैच के दिन राहुल को शांति चाहिए होती थी। उन्हें जल्दबाजी में टीम बस में जाना या क्रीज पर जाना पसंद नहीं था। अपनी आंतरिक स्थिरता बरकरार रखने के लिए राहुल को एकांत में दस मिनट चाहिए होते थे।
विजेता ने द्रविड़ के जीवन के ऐसे ही कुछ अनछुए पहलुओं को एक लेख में उजागर किया है। विजेता ने कहा कि इतने साल में द्रविड़ ने कभी आपा नहीं खोया लेकिन एक बार वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख सके। विजेता ने कहा, ‘मुझे याद है कि एक बार वह टेस्ट से लौटे और कहा कि मुझे आज बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कुछ और नहीं कहा। कई महीनों बाद वीरू ने मुझे बताया कि मुंबई में इंग्लैंड से हारने के बाद उन्होंने कुर्सी उठाकर फेंक दी थी।’
विजेता ने कहा कि राहुल को 2007-08 तक खेलने की उम्मीद थी, लेकिन उनके समर्पण, जुनून और फिटनेस रूटीन की वजह से वह 2012 तक खेल सके।द्रविड़ रात या दिन की परवाह किए बगैर शैडो प्रैक्टिस में मशगूल रहते थे। विजेता लिखती हैं, 'यह मेरे लिए अजीब था, एक बार तो रात को मुझे ऐसा लगा जैसे राहुल नींद में चल रहे हों, लेकिन वो प्रैक्टिस कर रहे थे।'
विजेता ने बताया है कि हर दौरे पर जाने के लिए राहुल का सारा सामान वह खुद पैक करती थीं, लेकिन वह उन्हें क्रिकेट किट पैक नहीं करने देते थे। क्रिकेट किट राहुल को काफी अजीज थी और उसे वह खुद ही पैक करते थे। उन्हें कपड़ों, ब्रांडेड घड़ियों, कारों या गैजेट्स की कोई चिंता नहीं थी। यहां तक कि राहुल बीस साल तक एक ही ड्राई क्रीम लगाते रहे। लेकिन क्रिकेट किट से कोई समझौता उन्हें मंजूर नहीं था। उनके बल्ले का वजन एक ग्राम भी कम हो जाए तो उन्हें तुरंत महसूस होता था।
राहुल मैच से पहले जम कर पसीना बहाते थे, लेकिन मैच के दिन राहुल को शांति चाहिए होती थी। उन्हें जल्दबाजी में टीम बस में जाना या क्रीज पर जाना पसंद नहीं था। अपनी आंतरिक स्थिरता बरकरार रखने के लिए राहुल को एकांत में दस मिनट चाहिए होते थे।
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